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( १३१) सत्ता-१४७ में से तिर्यंचायु घटाने पर १४६ की, परन्तु सायिक के केवल १३६ की। ७. अप्रयत्तविरत गणस्थान में
बंध-५ का | ६३ में से अरति, शोक, असातावेदनीय, अस्थिर, अशुभ, यश घटाने व आहारक शरीर व आहारक श्राहोपांग मिलाने पर।
उदय-७६ का । १ में से आहारक दो, निद्रा निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि घटाने पर ।
सत्ता-१४६ की, परन्तु क्षायिक के १३६ को। ८, अपूर्वकरण गुणस्थान में
वंध-8 में से देवायु घटाकर ५८ का।
उदय-७२ का । ७६ में ले सम्यक् प्रकृति, अर्धरानाच, कोलक व संप्राप्तापारिक संहनन घटाने पर।
सत्ता-१४६ में से अनन्तानुबन्धी चार कषाय घटाने पर १४२ की, परन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टिके १३६ की तथा आपक श्रेणी वाले के देवायु घटाकर १३८ की। ६. अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में
बंध २२ का।म में से ३६ घटाने पर । वे ३६ ये हैं:
निद्रा, प्रचला, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, तीर्थकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रियनाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, आहारक शरीर, आहारक आहोपांग, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक आझोपांग, समचतुरन्न संस्थान, देव गति