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स्व को घटाकर ६६ रहीं, उनमें चार गत्यानुपूर्वी व एक सम्यक् प्रकृति मिला देने पर
सत्ता - १४८ की । यदि क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो तो एक सो इकतालीस की ही सत्ता होगी ।
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५. देशविरत गुणस्थान में
बंध - ६७ का । चौथे की ७७ में से १० घटाने पर । वे १० ये हैं
अप्रत्याख्यानावरण कषाय चार, मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, श्रदारिक शरीर, श्रदारिक आङ्गोपांग, वज्र वृत्रभनाराच संहनन ।
उदय - ८७ का। चौथे की १०४ में से १७ घटाने पर । वे १७ ये हैं :
श्रप्रत्याख्यानावरण कषाय ४, नरकायु, देवायु, नरकादि ४ श्रानुपूर्वी, नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक श्राङ्गोपांग, दुभंग, अनादेय, यश ।
सत्ता - नरकायु के बिना १४७ की, परन्तु क्षायिक के
केवल १४० की ही ।
६. प्रमत्तविरत
में
गुणस्थान
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बंध - ६७ में से प्रत्याख्यानावरण कषाय चार घटाने पर ६३ का ।
हृदय-८१ का । ८७ में से प्रत्याख्यानावरण कषाय ४, तियंच आयु, तियंचगति, उद्योत, नीच. गोत्र घटाने व आहारक शरीर व श्राहारक श्रीङ्गोपांग मिलाने से ।