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उदय - ११७ में से ६ निकालकर १११ का । वे छः
ये हैं :
. मिथ्यात्व, श्रातप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नरकगत्यानुपूर्वी ।
सत्ता - १४५ की १४८ में से तीर्थङ्कर, श्राहारक, यह दो कम होती है।
३. मिश्र गुणस्थान में -
बंध -- १०१ में से २७ कम करके ७४ का । वे २७ ये हैं :
स्त्यानगृद्धि, निद्रा निद्रा, प्रचलाप्रचला, अनन्तानुबन्धी क्रोधादि ४, खीवेद, तियंच श्रायु, तियंचगति, तिथंच गत्यानुपूर्वी, नीचगोत्र, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, दु स्वर, श्रनादेय, न्यग्रोध से वामन चार संस्थान, वज्रनाराच से ले कीलक चार संहनन, मनुष्यायु और देवायु ।
उदय - १०० का १११ में से अनन्तानुवन्धी ४, एकन्द्रिय से चौइंद्रियतक ४ जाति, स्थावर, तियंच, मनुष्य, देवगत्यानुपूर्वी ३, ऐसे १२ घटाने व एक सम्यक् मिध्यात्व मिलाने से ११ घटती हैं ।
सत्ता - १४७ की तीर्थङ्कर के सिवाय ।
४. अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में
बंध - ७७ का। तीसरे की ७४ मे मनुष्यायु, देवायु, तीर्थकर तीन मिलाने पर |
उदय - १०४का। तीसरे की १०० में से सम्यक् मिथ्या