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श्रात्मा जैसा अन्तिम शरीर छोड़ते समय होता है वैसा ही उसका चेतनामय श्राकार सिद्ध क्षेत्र में रहता है । शरीर की माप नखकेशादि की माप भी श्राजाती है। जिनमें आत्मा व्यापक नहीं है, इतनी नाप कम होजाती है। ६०. चौदह गुणस्थान
संसारी जीवोंके मोहनीय कर्म और योगों के निमित्त से चौदह दर्जे होते हैं जिन में यह श्रात्मा मावों के क्रम से शुद्धि कम करता हुआ पूर्ण परमात्मा हो जाता है । इनको गुणस्थान कहते हैं—
१. मिथ्यात्व गुणस्थान -- जिस में सात तत्वों का देव, गुरु, धर्म व आत्मा का सच्चा श्रद्वान न हो, श्रात्मानन्द की पहिचान न हो । संसार सुख ही सुहावे। इस में प्रायः सर्व ससारी जीव हैं ।
संसार विषयातीतं सिद्धानामव्ययं सुखम् । श्रव्यावाधमिति प्रोक्तं परमं परमर्षिभिः ॥ ४५ ॥ ( तत्वार्थसार - मोक्षतत्व )
भावार्थ-बंध कारणोंके चले जानेसे व बन्धकी निर्जरा हो जाने से सर्व कर्मों से छूटने का नाम मोक्ष है। जैसे वीज भुन जाने पर फिर उस में अकुंर नहीं फूट सकता वैसे कर्मवीज के जल जाने पर संसार अंकुर नहीं होता ।
सिद्ध परमात्मा के आकार का प्रभाव नहीं है । वह पिछले छूटे हुए शरीर के प्रमाण आकार धारी हैं। सिद्धों के संसार के इन्द्रिय विषयों से भिन्न वाधा रहित, अविनाशी, उत्कृष्ट सुख पैदा होता है, ऐसा परमर्षियों ने कहा है।