________________
( ११५ )
करने के लिए प्रश्न कर निर्णय करना : अनुप्रेक्षा-जाने हुए पदार्थों का वार वार चिन्तवन करना ४ आम्नाय - शुद्ध शब्द व अर्थ कंठ करना धर्मोपदेश करना ।
[५] व्युतसर्ग -- बाहरी और भीतरी परिग्रह से ममता त्यागना - ऐसा दो प्रकार है ।
[६] ध्यान -- चित्तको एक किसी पदार्थ में रोक कर तन्मय हो जाना । *
५३. ध्यान
ध्यान चार तरह का होता है १. आत २ रौद्र ३. धर्म ४ शुक्ल । इन में पहिले दो पापबन्ध के कारण हैं। धर्म और शुक्ल में जितनी वीतरागता है वह कर्मों की निर्जरा करती है व जितना शुभराग है वह पुराय बन्ध का कारण है । १. ध्यान चार तरह का होता है :
-
१. इष्ट बियोगज - इष्ट स्त्री, पुत्र धनादिके वियोग पर शोक करना ।
२. अनिष्ट संयोगज - श्रनिष्ट दुखदाई सम्बन्ध होने पर शोक करना ।
३. पीड़ा चिन्तवन- पीड़ा रोग होने पर दुःखी होना । ४. निदान - आगामी भोगों की चाह से जलना ।
ं अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्क शय्यासनकायक्लेशाबाह्यं तपः ॥ १६ ॥ प्रायश्चित विनयवैय्यानृत्यस्वाध्यायन्युतसर्गध्यानान्युत्तरम् ॥ २० ॥ (तत्वा० ० ६)