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( ११६) २. रौद्रध्यान चार तरह का होता है :
१. हिंसानन्द-हिंसा करने कगने व हिंसा हुई सुनकर मानन्द मानना।
____२. मृषानन्द-असत्य बोलकर, वुलाकर व बोला हुआ जान कर आनन्द मानना ।
३ चौर्यानन्द-चोरी करके, कराके व चोरी हुई सुनकर हर्षित होना।
४. परिग्रहानन्द-परिग्रह बढाकर,व बढ़वाकर व बढ़ती दुई देखकर हर्ष मानना। ३. धर्मध्यान चार प्रकार का है :
१. प्रोक्षाविचय-जिनेन्द्र की आज्ञानुसार आगम के द्वारा तत्वों का विचार करना।
२ अपाय विचय-अपने व अन्य जीवोंके अज्ञान व कर्म के नाश का उपाय विचारना।
३. विपाक विचय-आपको व अन्य जीवों को सुखी या दुःखी देखकर कर्मों के फल का स्वरूप विचारना ।
४ संस्थान विचय-इस लोकका तथा आत्माका श्राकार व स्वरूप का विचार करना । इस के चार भेद हैं:१ पिडस्थ २ पदस्थ ३ रूपस्थ ४ रूपातीत ।
५४. पिंडस्थ ध्यान
ध्यान करने वाला मन वचनकाय शुद्धकर एकान्त स्थान में जाकर पद्मासन या खड़े प्रासन व अन्य किली प्रासन से