________________
( ११० )
४६. बाईस परीषह जय
जिन को शान्त मनसे सहा जावे उनको परीवह कहते हैं। कष्टों के सहने से धर्म में दृढता होती है व कर्मों का नाश होता है व संवर होता है । वे परीषह निम्न बाईस होती हैं, जिनको साधु महाराज ही विजय करते हैं :--
१. क्षुधा - भूख की बाधा २ पिपासा - प्यास की बाधा ३. शीत-सरदी का कष्ट ४. उष्ण-गर्मी की बाधा ५ दशम शक- डाँस मच्छरों के काटने की बाधा ६. नाम्य- नग्न रहने की लज्जा ७ श्ररति-अमनोज्ञ पदार्थ मिलने पर प्रीति ८. स्त्री - स्त्रियों के हाव भाव विलास का जाल ६. चर्यामार्ग में पैदल चलने का कष्ट १०. निषद्या- श्रासन से बैठने का कष्ट ११. शय्या - भूमि पर सोने की बाधा १२. श्राक्रोशगाली सुनने पर विकार १३. बध-मारे पीटे जाने का दुःख १४. याचना - मांगने की इच्छा १५. श्रलाभ - भोजनादि में अन्तराय का खेद १६. रोग-शरीर में रोगों की पीड़ा १७. तृण स्पर्श-आते जाते कठोर तृणों का स्पर्श १८. मल - शरीर मैला रहने का भाव १६. सत्कार पुरस्कार - नादर सत्कार न होने से खेद २०. प्रज्ञा-बहुत ज्ञानी होने का मद २१. श्रज्ञान- ज्ञान न बढ़ने का खेद २२. प्रदर्शन- तप माहात्म्य न प्रकट होने पर तप में श्रश्रद्धा ।
इन २२ परिषहों को जीतकर श्रात्म रस पान करते हुए शान्त मन रखने से परिषह जय होता है ।
५०. पांच प्रकार चारित्र
१] सामायिक - राग द्वेष त्याग कर समता भाव