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नोट- अनगिन्ती वर्षों को सागर कहते हैं । इन्हीं बंधते हुए कर्मों में कषाय के निमित्त से तीव्र या मंद फल देनेकी जो शक्ति होजाती है, उसे अनुभाग कहते है ।
ज्ञानावरणीय आदि चार घातिया कर्मोका अनुभाग लता (वेल), दारु (काष्ठ), अस्थि । हड्डी), पाषाणके समान मन्द तर, मन्द, तीघ्र, तीव्रतर पड़ता है। अघातिया कर्मों में जां असाता आदि पाप कर्म है उनका अनुभाग नोम, कांजी, विपहलाहल के समान मंदतर, मंद, तीव्र, नीव्रतर कटुक पड़ता है । श्रघातिया कर्मों में साता आदि पुण्य कर्मों का अनुभाग गुड़, खांड, शर्करा, अमृत के समान मंदतर, मंद, तीव्र, तीव्रतर मधुर पड़ता है। आयु कर्म को छोड़ कर सात फर्मों की स्थिति यदि कषाय अधिक होगी तो अधिक पड़ेगी, कम होगी तो कम पड़ेगी परंतु पाप कर्मों का अनुभाग तीव्र कषाय से अधिक पड़ेगा, मंदकपाय से कम पड़ेगा । पुण्य कर्मों का अनुभाग मन्द कषायसे अधिक व तीव्र कपायसे अल्प पड़ेगा । मन्द कषायसे शुभ आयु की स्थिति अधिक होगी, तीव्र कषाय से कम | ऐसेही तीव्र कषायसे अशुभ आयुकी स्थिति अधिक होगी मन्द से कम ।
कोटी कोटयः परास्थितिः ॥ १४ ॥ सप्ततिमहनीयस्य ॥ १५ ॥ विंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ १६ ॥ त्रायस्त्रिशत्सागरोपमाख्यायुषः ॥ १७ ॥ अप द्वादश मुहूर्ता वेदनीयस्य ॥ १८ ॥ नामगोत्रयोरष्टौ ॥ १६ ॥ शेषाणामंतमुहूर्ता ॥ २० ॥ ( तत्वा० श्र० ८ ) * विपाकोऽनुभवः ॥ २१ ॥ ( तत्वा० श्र० ८ )