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( ५ ) ३६. आठों कर्मों के बंध के विशेष भाव __यद्यपि शुभ या अशुम भावों से हरसमय हर एक जीव के आठ या सात कर्म की प्रकृतियों का बन्ध होता है, तथापि जिस जाति के विशेष भाव होते है उन भावों से उस विशेष कर्म में अधिक अनुभाग पडता है । वे विशेषभाव नीचे प्रकार जानना चाहियः१. ज्ञानावरण और दर्शनावरण के विशेष भाव
१. सच्चे ज्ञान व शानियों से द्वेष भाव २. पाप बानी हो करके भी अपने ज्ञान को छिपाना ३ ईर्षा से दूसरों को शान दान न करना ४ जानकी उन्नति में विघ्न करना ५ भान व ज्ञानी का अविनय करना ६. उत्तम ज्ञान का भी कुयुक्ति से खण्डन करना। २. असाता वेदनीय कर्म के भाव
अपने को श्राप या दूसरों को या आप पर दोनों को १ दुख देना २ शोकित करना ३ पश्चाताप करना (किसी वस्तु के छूटने पर व न मिलने पर पछताना) ४ रुलाना ५ मारना ६ ऐसा रुलाना कि दूसरो को दया आजावे । ३. साता वेदनीय कर्म के भाव
(१) सर्व प्राणीमात्र पर दयाभाव (२) व्रती धर्मात्माओं पर विशेष दयाभाव (३) आहार, औषधि, विद्या व अभय या प्राणदान, ऐसे चार दानकरना (४) साधु का धर्म प्रेम सहित पालना (५) श्रावक गृहस्थ का धर्म पालना (६) समताभाव से दुःख सहलेना (७) तपस्या करना (5) ध्यान करना (E) तमाभाव रखना (१०) पवित्रता या संतोप रखना।