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(६०) योग्यता नवीनगति में अन्तमुहूर्त में पा सके १३४ अपर्याप्तिजिससे आहारादि बनने की योग्यता न पाकर अन्तमुहर्त में ही मरण कर जाये १३५ स्थिर-जिससे शरीर में वायु पित्त कफादि स्थिर हो १३६. अस्थिर-जिससे पित्तादि स्थिर न हो १३७. श्रादेय-जिससे प्रभावान शरीर हो १३८ श्रना. देय-जिससे प्रभा रहित शरीर हो १३६ यशाकीर्ति-जिससे यश हो १४०. अयश कीर्ति-जिससे अयश हो । १४१. तीर्थकर-जिससे तीर्थदर होकर धर्म मार्ग फैलावे।
[७] गोत्र कर्म की दो प्रकृतियां-१४२. उच्चगोत्र जिस से लोक माननीय कुल में जन्मे १४३ नीच गोत्र जिससे लोकनिंद्य कुल में जन्मे।
[-] अन्तराय कर्मकी प्रकृतियां-१४४ दानान्तराय जिससे दान करना चाहे, पर कर न सके १४५. लाभान्तराय जिस से लाभ लेना चाहे, पर ले न सके १४६. भोगान्तराय जिस से भोगना चाहे, पर भोग न सके १४७. उपभोगान्त. राय जिस से बार बार भोगना चाहे पर भोग न सके १४८. वीर्यान्तराय जिससे उत्साह करे पर कुछ कर न सके।
श्राद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नाम गोत्रों तरायाः ॥४ामतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलानाम॥६॥चदरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रवलास्त्यानगृद्धयश्च ॥ ७॥ सदसद्वेद्य ॥ ॥ दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषाय वेदनीयाख्यात्रिद्विनवषोडशभेदाः । सम्यक्त्व मिथ्यात्वतदुमयान्यऽकृषायकषायो हास्यरत्यरतिशोकमयजुगु प्सा स्लीपुनपुंसकवेदाः अनन्तानुवन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यान