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नीचे की स्थान ये आठ अ होते हैं, इनके श्रंशों को उपांग कहते हैं ] ६४. वैक्रियिक अंगोपांग - जिससे वैक्रियिक शरीर
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गोपांग बने ६५. श्राहारक ांगोपांग - आहारक शरीर में शांगोपांग बने ६६. स्थान निर्माण - जिससे अांगोपांग का स्थान बने ६७. प्रमाण निर्माण - जिससे उनकी माप वने ६८. औदारिक शरीर बंधन - जिससे श्रदारिक शरीर बनने योग्य पुद्गल का परस्पर मेल हो ६६ वैक्रियिक शरीर बंधन जिसमे वैक्रियिक शरीर के बनने योग्य पुद्गल का मेल हो ७०. आहारक शरीर बंधन-- जिससे आहारक शरीर के बनने योग्य पुगलका मेल हो ७२ तैजस शरीर बन्धन -- जिससे तैजस शरीरं के पुद्गलका मेल हो ७२ कार्मण शरीर बन्धनजिससे कार्मण शरीर के पुद्गल का मेल हो, ७३. औदारिक शरीर संघात - जिससे श्रदारिक शरीर की रचना में छिद्र रहित पुगल हो जावे ७४. वैक्रियिक शरीर संघान -- जिससे वैक्रियिक शरीर में पुद्गल काय रूप हो ७५. आहारक शरीर संघात -- जिससे आहारक शरीर में पुल काय रूप हॉ ७६. नैजस शरीर संघात - जिस से तैजस शरीर में पुद्गल काय रूप हो । ७७. कार्मण शरीर संघात - जिससे कार्मण शरीरमें पुद्गल कायरूप हो ७८. समचतुरस्र संस्थान -- जिस से शरीरका श्राकार सुडौल हो ७६. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानजिस से श्राकार बड़ के समान ऊपर बड़ा और 'नीचे छोटा हो ८०. स्वाति संस्थान - जिससे सांपकी बंबईके समान ऊपर छोटा और नीचे वडा आकार हो ८१. कुब्जक संस्थानजिससे कुबडा श्राकार हो ८२ वामन संस्थान - जिससे बहुत छोटा बौना आकार हो ८३, हुडक संस्थान - जिस से बेडौल