________________
( ८६ )
स्त्री से रमने की चाह हो ४४ नपुंसक वेद जिससे दोनों से रमने की चाह हो ।
[५] श्रायुकर्म की चार प्रकृतियाँ - ४५ नरक आयु जिससे नारकी के शरीर में रहे ४६ तियंच आयु जिससे एकेन्द्री से पंचेन्द्री पशु के शरीर में रहे ४७ मनुष्य श्रायु जिससे मानवदेह में रहे ४८ देव श्रायु जिनसे देव शरीर में रहे।
p
[६] नाम कर्म की ६३ प्रकृतियां - ४६ नरकगतिजिससे नरक में जाकर नारकी की अवस्था पावे ५०. तियंच गति - जिससे तिथेच की दशा पावे ५१. मनुष्यगति - जिस से मनुष्य की दशा पावे ५२. देवगति - जिससे देव की दशा पावे ५३. एकेन्द्रियजाति - जिससे स्पर्शन इन्द्रिय वाले जीवो की आति में जन्मे ५४. डीन्द्रिय जाति - स्पर्शन रसना दो इन्द्रिय वालों की जाति में जन्मे ५५. ते इन्द्रिय जाति - जिस से स्पर्शन, रसना, घ्राण, तीन इन्द्रिय वालो की जाति पाव ५६. चतुरिन्द्रिय जाति - जिससे स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, चार इन्द्रिय वालोंकी जाति पावे ५७. पचेन्द्रिय जातिजिससे कर्ण सहित पांचों इन्द्रिय वाली जाति पावे ।
८. श्रदारिक शरीर - जिससे श्रदारिक शरीर बनने योग्य afणा लेकर वैसा शरीर बने ५६. वैक्रियिक शरीर - जिससे वैक्रियिक शरीर बने ६०. श्राहारक शरीर --- जिससे श्राहारक शरीर बने ६१ तैजस शरीर - जिससे तैजस शरीर बने ६२ कार्मण शरीर - जिससे कार्मण शरीर वने ६३. श्रौदारिक श्राङ्गोपाङ्ग - जिससे औदारिक शरीर में आङ्गोपाङ्ग बने[१ मस्तक, १ पेट. १ पीठ, दो बाहु, दो टांग, एक कमर के