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१.२ चारित्र मोम कुछ मन लगेको हो १६ सम्म
(८५) [३] वेदनीय की २ प्रकृनियाँ-१५. सातावेदनीय जो साताभोग करावे १६. असाता वेदनीय जो दुख भोग करावे।
[४] मोहनीय की २८ प्रकृतियाँ१. दर्शनमोहनीय को तीन--१७ मिथ्यात्व जिस से सच्चे तत्वो में श्रद्धा न हो १८. सम्यग्मिथ्यात्व या मिश्र जिस से सत्य अमत्य तत्वों में मिश्रित श्रद्धा हो १९ सम्यक्त्व जिस से सत्य श्रद्धा में कुछ मन लगे।
२ चारित्र मोहनीय की २५ प्रकृतियां-सोलह कयाय२० अनन्तानुबंधी क्रोध जिससे सम्यग्दर्शन और स्वरूप में आचरणरूप चरित्र का घात हो; ऐसे ही २१. अनन्तानुबन्धी मान २२. अनन्तानुबन्धी माया २३. अनन्तानुः बन्धी लोभ । २४ अप्रत्याख्यानावरण क्रोध जिस से श्रावक गृहस्थ के व्रत न हो सके ऐसे ही २५. अप्रत्याख्यानावरण मान २६. अप्रत्याख्यानावरण माया २७ अप्रत्याख्यानावरण लोभ । २८ प्रत्याख्यानावरण क्रोध जिससे साधु के व्रत न हो सके ऐसे ही २६ प्रत्याख्यानावरण मान ३० प्रत्याख्यानावरण मायो ३१ प्रत्याख्यानावरण लोम । ३२ संज्वलन क्रोध जिससे पूर्ण यथाख्यात चारित्र न हो सके, ऐले ही ३३ संज्वलन मान ३४ संज्वलन माया ३५. संज्वलन लोभ । नो कषाय या अल्प कषाय 8--३६ हाम्य जिससे हसी श्रावे ३७ रति जिससे इन्द्रिय विषयों में प्रीति हो ३८. अरति जिस से कुछ न सुहावे ३६ शोक जिस से सोच करे ४० भय जिससे डरे ४१ जुगुप्सा जिससे ग्लानि करे ४२ स्त्री वेद जिससे पुरुषसे रमने की चाह हो-४३ पुरुषवेद जिससे