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भोग करावे ( ४ ) मोहनीय जो आत्माके श्रद्धान और चारित्र [ शान्ति ] को बिगाड़े (५) आयु जो किसी शरीरमें श्रात्मा को रोक रक्खे (६) नाम जो शरीर की अच्छी बुरी रचना करे । ( ७ ) गोत्र जो ऊँच नीच कुल में जन्म करावे । (८) अन्तराय जो लाभ, भोग, उपभोग, दान व आत्मा के उत्साह या वीर्य में विघ्न करे ।
इनमें से नं० १, २, ४ व ८ को घातिया कर्म कहते हैं क्योंकि ये चारों श्रात्मा के ज्ञान, दर्शन, सम्यग्दर्शन श्रौर चारित्र तथा श्रात्मबल के गुणों का नाश करते हैं। शेष चार बाहरी सामग्री जोड़ते हैं इस लिए वे श्रघातिया हैं । के १४८ भेद इस तरह से हैं :
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[१] ज्ञानावरण के पांच भेद - १. मनिज्ञानावरण २ श्रुत ज्ञानावरण ३. श्रवधि ज्ञानावरण ४. मन पर्यय ज्ञानावरण ५. केवल ज्ञानावरण । ये क्रम से मति श्रादि ज्ञानों को ढकती हैं।
[२] दर्शनावरण की प्रकृतियां - ६. चतुर्दर्शनावरण जो श्राँखों से सामान्य निराकार दर्शन को रोके ७. श्रचक्षुदर्शनावरण जो आँख के सिवाय अन्य इन्द्रिय और मन द्वारा सामान्य अवलोकन को शेके अवधि दर्शनावरण जो श्रवधिज्ञान के पहिले होने वाले दर्शन को रोके 8. केवल दर्शनावरण जो पूर्ण दर्शन को रोके १०. निद्रा जिस से कुछ नींद हो ११. निद्रानिद्रा जिस से गाढ़ी नींद हो १२ प्रचला जिस से बैठे २ ॐघे १३. प्रचला प्रचला जिस से खूब ॐ घे, मुँह से रात बहे १४. स्त्यानगृद्धि जिस से नींद में कोई काम कर लेवे और सो जावे ।