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( ७३ ) अधर्म मे असंख्यात और आकाश में अनन्त प्रदेश है। लोक के भी असंख्यात प्रदेश है । इसी के बराबर धर्म अधर्म व एक जीव के प्रदेश हैं।
पुद्गलका सबसे छोटा हिस्सा परमाणु होता है, परन्तु । बहुत से परमाणु मिलकर म्कन्ध बनते हैं। वे स्कन्ध कार्ड संख्यात, कोई असंख्यात, कोई अनन्त परमाणुओं के होते है, इस से पुद्गल के तीन प्रकार प्रदेश होते हैं। क्योकि जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश मे एक से अधिक प्रदेश होने है । इसलिए इन पाँच को जैन सिद्धान्त में अस्तिकाय कहा है। ___ काल द्रव्य लोककं एक र प्रदेश में अलग अलग ग्लो के समान फैले हुए है । इसलिये वे सब एक प्रदेशी ही है, यद्यपि गणना में असंख्यात है । अतएव काल द्रव्य को काय में नहीं गिना है। यह ध्यान में रहे कि जैन सिद्धान्न मे माप २१ तरह की बताई है। किसी हद तक संख्यातकं जघन्य, मध्यम उत्कृष्ट भेद समाप्त हो जाते हैं। फिर असंख्यातक भेद फिर अनन्त के भेद होते हैं। सब से बड़ी संख्या उत्कृष्ट अनन्तानन्त है।
___नाद-संख्यात, असंख्यात और अनन्त की विस्तृत व्याख्या व मेदादि जानने के लिये देखो "श्री वृहत् जैन शब्दा. रणव" भाग १ में शब्द 'अङ्कगणना', पृष्ठ ८६ से १०३ तक।
इन छः द्रव्योंमें धर्म अधर्म, आकाश एक एक है, काल असंख्यात है। जीव और पुद्गल अनन्त हैं । चार द्रव्य स्थिर रहते हैं. केवल जीव पुद्गल में ही हलन चलन क्रिया होती है। इसलिये ये ही क्रियावान है तथा इनही में वैमाविक शक्ति