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कर अनन्त श्राकाश में बिखर जायेंगे। क्योंकि श्राकाश अनन्त होने से वे जीव तथा पुद्गल चलते २ अनन्त श्राकाश में जा सकते हैं । परन्तु वे नही जाते, क्योंकि जहां तक जगत है वहां तक ही धर्म अधर्म द्रव्य है. इसलिए जगत में ही चलते व ठहरते है ।
३०. पाँच अस्तिकाय - विभाववान् और क्रियावाद दो द्रव्य
हर एक द्रव्य में एक सामान्य गुण प्रदेशत्व हैं जिससे 'हर एक द्रव्य का कुछ न कुछ आकार होता है । द्रव्यों का आकार नापने के लिए प्रदेश एक माप है । जितने श्राकाश की पुद्गल का वह परमाणु जिसका दूसरा भाग नहीं हो सकता रोकता है, उसको प्रदेश कहते हैं । इस माप से नापा जावे तो हर एक जीव में असंख्यात प्रदेश, धर्म द्रव्य में श्रसंख्यात, ॐ स्पर्श रस गन्ध वर्णवन्तः पुद्गलाः || २३ श्र० ५ ॥ गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकारः ॥ १७ श्र० ५ ॥ श्राकाशस्यावगाहः ॥ १८ अ० ५ ॥ वर्तनापरिणाम क्रिया परत्वापरत्वेच कालस्य ॥२२ श्र० ५ ॥ ( तत्वार्थ सूत्र )
भावार्थ - जिसमें स्पर्श रस, गन्ध, वर्ण हो वे पुद्गल गमन कराना धर्म का व स्थिति कराना अधर्म का व श्रवकाश देना आकाश का गुण है, पलटाना काल का गुण है । अवस्था चाल तथा कमती बढ़ती समय लगने से व्यवहार काल का ज्ञान होता है ।