________________ जैनदर्शन न्यायबि० न्यायबि० टी० न्यायभा० न्यायमं० न्यायवा० न्यायवा० ता० टी० न्यायवि० न्यायसार न्यायसू० न्यायावता० पत्रप० पात्रकेसरिस्तोत्र परी० पंचा० पात. महाभाष्य पात० महा० पस्पशा० पूर्वी और पश्चिमी दर्शन पंचाध्यायी प्रमाणनयतत्त्वा० प्रव० प्रमाणमी० प्रमाणवा० प्र० वा० प्रमाणवातिकालं० प्रमाणवा० मनोरथ० ) प्र० वा० मनोर० प्रमाणवा० स्वव० प्रमाणवा० स्ववृ० टी० ) प्र० वास्ववृत्तिं टी० / प्रमाणसमु० प्रमाणसं० प्रमेयक० न्यायबिन्दु न्यायबिन्दुटीका-धर्मोत्तर न्यायमाष्य न्यायमञ्जरी न्यायवार्तिक न्यायवार्तिक तात्पर्यटीका न्यायनिनिश्चय मासर्वज्ञकृत न्यायसूत्र न्यायावतार पत्रपरीक्षा प्रथमगुच्छकान्तर्गत परीक्षामुख पञ्चास्तिकाय पातञ्जल महाभाष्य पातञ्जल महामाप्य पस्पशाह्निक डॉ. देवराजकृत राजमल्लकृत प्रयाणनयतत्त्वालोकालङ्कार प्रवचनसार प्रमाणमीमांसा प्रमाणवार्तिक प्रमाणवार्तिकालंकार प्रमाणवार्तिकमनोरथनन्दिनी टीका प्रमाणवार्तिकस्ववृत्ति प्रमाणवार्तिकस्ववृत्तिटीका प्रमाणसमुच्चय प्रमाणसंग्रह अकलङ्कग्रन्थत्रयान्तर्गत प्रमेयकमलमार्तण्ड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org