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________________ जैनदशन २९४ २९५ २९६ २९६ २९६ २९६ २९६ २९७ २९७ २९७ २९८ ३०१ س ३०४ ३०४ अर्थापत्ति अनुमानमें अन्तर्भूत है २५४ प्रमाणाभास संभव स्वतन्त्र प्रमाण नहीं २५५ सन्निकर्षादि प्रमाणाभास अभाव स्वतन्त्र प्रमाण नहीं २५५ प्रत्यक्षाभास कथा-विचार २५७ परोक्षाभास साध्यकी तरह साधनोंकी भी सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास पवित्रता २५९ मुख्यप्रत्यक्षाभास जय-पराजयव्यवस्था २६० स्मरणाभास पत्रवाक्य २६४ प्रत्यभिज्ञानाभास आगमश्रुत २६५ तर्काभास श्रुतके तीन भेद २६६ अनुमानाभास आगमवाद और हेतुवाद २६७ हेत्वाभास वेदके अपौरुषेयत्वका विचार २७० दृष्टान्ताभास शब्दार्थप्रतिपत्ति २७३ उदाहरणाभास शब्दकी अर्थवाचकता २७४ बालप्रयोगाभास अन्यापोह शब्दका वाच्य नहीं २७४ आगमाभास सामान्यविशेषात्मक अर्थ संख्याभास वाच्य है २७६ विषयाभास प्राकृत-अपभ्रंश शब्दोंकी अर्थ- ब्रह्मवाद-विचार : पूर्वपक्ष बाचकता २८१ जैनका उत्तरपक्ष उत्तर पक्ष २८३ शब्दाद्वैतवाद-समीक्षा उपसंहार . .. : २८६ सांख्यके 'प्रधान' सामान्यवाद ज्ञानके कारण ___ २८६ की मीमांसा बौद्धोंके चार प्रत्यय और विशेषपदार्थवाद ... तदुत्पत्ति आदि २८७ (क्षणिकवादमीमांसा) अर्थ कारण नहीं . २८९ विज्ञानवादकी समीक्षा आलोक भी ज्ञानका कारण नहीं २९१ शून्यवादको आलोचना प्रमाणका फल ... .... २९१ उभयस्वतन्त्रवादमीमांसा प्रमाण और फलका भेदाभेद २९३ फलाभास ३०४ ३०५ ३१३ ३१५ ३२२ ३२८ ३२८ ३२९ ३३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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