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प्राक्कथन
जैनदर्शन नास्तिक नहीं :
इसी प्रसङ्गमें भारतीय दर्शनके विषय में एक परम्परागत मिथ्या भ्रमका उल्लेख करना भी हमें आवश्यक प्रतीत होता है । कुछ कालसे लोग ऐसा समझने लगे हैं कि भारतीय दर्शनकी आस्तिक और नास्तिक नामसे दो शाखाएँ हैं । तथाकथित 'वैदिक' दर्शनोंको आस्तिक दर्शन और जैन, बौद्ध जैसे दर्शनोंको 'नास्तिक दर्शन' कहा जाता है । वस्तुत: यह वर्गीकरण निराधार ही नहीं, नितान्त मिथ्या भी है । आस्तिक और नास्तिक शब्द " अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः " ( पा० ४ |४| ३० ) इस पाणिनिसूत्र के अनुसार बने हैं । मौलिक अर्थ उनका यही था कि परलोक ( जिसको हम दूसरे शब्दोंमें इन्द्रियातीत तथ्य भी कह सकते हैं ) की सत्ताको माननेवाला 'आस्तिक' और न माननेवाला 'नास्तिक' कहलाता है । स्पष्टतः इस अर्थमें जैन और बौद्ध जैसे दर्शनोंको नास्तिक कहा ही नहीं जा सकता । इसके विपरीत हम तो यह समझते हैं कि शब्द प्रमाणकी निरपेक्षतासे वस्तुतत्त्वपर विचार करनेके कारण दूसरे दर्शनोंकी अपेक्षा उनका अपना एक आदरणीय वैशिष्ट्य ही है । जैन दर्शनकी देन :
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भारतीय दर्शनके इतिहास में जैनदर्शनकी अपनी अनोखी देन है | दर्शन शब्दका फिलासफी के अर्थ में कबसे प्रयोग होने लगा है, इसका तत्काल निर्णय करना कठिन है, तो भी इस शब्दकी इस अर्थ में प्राचीनताके विषयमें सन्देह नहीं हो सकता । तत्तद् दर्शनोंके लिये दर्शन शब्दका प्रयोग मूलमें इसी अर्थसे हुआ होगा कि किसी भी इन्द्रियातीत तत्त्वके परीक्षण में तत्तद् व्यक्तिको स्वाभाविक रुचि, परिस्थिति या अधिकारिताके भेदसे जो तात्त्विक दृष्टिभेद होता है उसीको दर्शन शब्दसे व्यक्त किया जाय । ऐसी अवस्था में यह स्पष्ट है कि किसी तत्त्वके विषय में कोई भी तात्त्विक दृष्टि ऐकान्तिक नहीं हो सकती । प्रत्येक तत्त्वमें अनेकरूपता स्वभावतः होनी चाहिये और कोई भी दृष्टि उन सबका एक साथ तात्त्विक प्रतिपादन नहीं कर सकती। इसी सिद्धान्तको जैनदर्शनकी परिभाषा में 'अनेकान्तदर्शन' कहा गया है । जैनदर्शनका तो यह आधारस्तम्भ है ही, परन्तु वास्तव में प्रत्येक दार्शनिक विचारधाराके लिये भी इसको आवश्यक मानना चाहिये ।
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बौद्धिक स्तर में इस सिद्धान्तके मान लेनेसे मनुष्यके नैतिक और लौकिक व्यवहार में एक महत्त्वका परिवर्तन आ जाता है । चारित्र ही मानव के जीवनका सार है | चारित्रके लिये मौलिक आवश्यकता इस बातकी है कि मनुष्य एक ओर तो अभिमानसे अपनेको पृथक् रखे, साथ ही हीन भावनासे भी अपनेको बचाये । स्पष्टतः यह मार्ग अत्यन्त कठिन है । वास्तविक अर्थोंमें जो अपने स्वरूपको समझता
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