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लोकव्यवस्था उस अकर्तृत्व भावनाका उपयोग है। इस अकर्तृत्वकी सीमा पराकर्तृत्व है; स्वाकर्तृत्व नहीं। पर नियतिवाद तो स्वकर्तृत्वको ही समाप्त कर देता है; क्योंकि इसमें सब कुछ नियत है। पुण्य और पाप क्या ?: ___ जब प्रत्येक जीवका प्रतिसमयका कार्यक्रम निश्चित है अर्थात् परकर्तृत्व तो है ही नहीं, साथ ही स्वकर्तृत्व भी नहीं है तब क्या पुण्य और क्या पाप ? क्या सदाचार और क्या दुराचार ? जब प्रत्येक घटना पूर्वनिश्चित योजनाके अनुसार घट रही है तब किसीको क्या दोष दिया जाय ? किसी स्त्रीका शील भ्रष्ट हुआ । इसमें जो स्त्री, पुरुष और शय्या आदि द्रव्य संबद्ध हैं, जब सबकी पर्याय नियत हैं तब पुरुषको क्यों पकड़ा जाय ? स्त्रीका परिणमन वैसा होना था, पुरुषका वैसा और बिस्तरका भी वैसा। जब सबके नियत परिणमनोंका नियत मेलरूप दुराचार भी नियत ही था, तब किसीको दुराचारी या गुण्डा क्यों कहा जाय ? यदि प्रत्येक द्रव्यका भविष्यके प्रत्येक क्षणका अनन्तकालीन कार्यक्रम नियत है, भले ही वह हमें मालूम न हो, तब इस नितान्त परतन्त्र स्थितिमें व्यक्तिका स्वपुरुषार्थ कहाँ रहा ? गोडसे हत्यारा क्यों ?: ___ नाथूराम गोडसेने महात्माजीको गोली मारी तो क्यों नाथूरामको हत्यारा कहा जाय ? नाथूरामका उस समय वैसा ही परिणमन होना था, महात्माजीका वैसा ही होना था और गोली और पिस्तौलका भी वैसा ही परिणमन निश्चित था । अर्थात् हत्या नामक घटना नाथूराम, महात्माजी, पिस्तौल और गोली आदि अनेक पदार्थोंके नियत कार्यक्रमका परिणाम है। इस घटनासे सम्बद्ध सभी पदार्थोंके परिणमन नियत थे, सब परवश थे। यदि यह कहा जाता है कि नाथूराम महात्माजीके प्राणवियोगमें निमित्त होनेसे हत्यारा है; तो महात्माजी नाथूरामके गोली चलानेमें निमित्त होनेसे अपराधी क्यों नहीं ? यदि नियतिदास नाथूराम दोषी है तो नियति-परवश महात्माजी क्यों नहीं। हम तो यह कहते हैं कि पिस्तौलसे गोली निकलनी थी और गोलीको छातीमें छिदना था, इसलिए नाथूराम और महात्माजीकी उपस्थिति हुई। नाथूराम तो गोली और पिस्तौलके उस अवश्यंभावी परिणमनका एक निमित्त था, जिसे नियतिचक्रके कारण वहाँ पहुँचना पड़ा। जिन पदार्थोंकी नियतिका परिणाम हत्या नामकी घटना है, वे सब पदार्थ समानरूपसे नियतियन्त्रसे नियन्त्रित हो जब उसमें जुटे हैं, तब उनमेंसे क्यों मात्र नाथूरामको पकड़ा जाता है ? इतना ही नहीं, हम सबको उस दिन ऐसी खबर सुननी
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