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________________ ऋजुगति-पूर्व भव के शरीर को छोडकर आगामी भव मे जाते हुए जीव की जो सरल अर्थात् धनुष से छूटे हुए बाण के समान मोडा-रहित गति होती है-उसे ऋजुगति कहते है। इसका दूसरा नाम ईषुगति भी है। ऋजुमति-जो ज्ञान दूसरे के मन मे स्थित सरल अर्थ को जान लेता है उसे ऋजुमति-मन पर्यय-ज्ञान कहते है। ऋजुसूत्र-जो केवल वर्तमान काल सबधी पर्याय को ग्रहण करता है उसे ऋजुसूत्रनय कहते है। यह दो प्रकार का है-सूक्ष्म-ऋजुसूत्र और स्थूल-ऋजुसूत्र । सूक्ष्म-ऋजुसूत्र-नय प्रतिक्षण होने वाली अर्थ-पर्याय को ग्रहण करता है। स्थूल-ऋजुसूत्र-नय देव,मनुष्य आदि स्थूल पर्यायो को ग्रहण करता है। ऋद्धि-तपस्या के फलस्वरूप साधु को जो विशेष शक्तिया प्राप्त हो जाती है उन्हे ऋद्धि कहते है। ऋद्धिया सात प्रकार की है जिनके भेद-प्रभेद चौसठ हैं। ऋद्धिगारव-शिष्य, पुस्तक, कमण्डलु आदि के द्वारा अपना बडप्पन या अभिमान प्रगट करना ऋद्धिगारव नामक दोष है। ऋषि-ऋद्धि प्राप्त साधुओ को ऋषि कहते हैं। जो चार प्रकार के है-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि । जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 59
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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