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________________ थे । ब्राह्मी और सुदरी इनकी बेटिया थीं । कर्मभूमि के प्रारभ मे प्रजा को अहिसा प्रधान जीवन-पद्धति सिखलाने के अभिप्राय से इन्होने असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन षट्कर्मो का उपदेश दिया । इनकी आयु चौरासी लाख वर्ष पूर्व थी। बीस लाख वर्ष पूर्व का समय कुमार अवस्था में व्यतीत करके तिरेसठ लाख वर्ष पूर्व काल तक राज्य किया और एक दिन स्वर्ग की देवी नीलाजना का राजदरवार में नृत्य करते-करते अकस्मात् मरण होता देखकर ससार से विरक्त हो गए। जिनदीक्षा लेकर छ माह तक ध्यानस्थ रहे फिर छ माह तक साधु के योग्य आहार - विधि जानने वालो का अभाव होने से आहार का योग नहीं लगा, इस तरह एक वर्ष तक निराहार रहने के उपरात राजा श्रेयास के यहा प्रथम आहार हुआ। एक हजार वर्ष की कठिन तपस्या के उपरात केवलज्ञान प्राप्त हुआ और समवसरण मे सभी जीवो का कल्याण करने वाली दिव्य-ध्वनि खिरने लगी । आपके चतुर्विध सघ मे चौरासी गणधर, वीस हजार केवलज्ञानी, बीस हजार छ सी विक्रिया ऋद्धिधारी, इतने ही विपुलमति मन पर्यय ज्ञानी और अन्य मुनि थे, पचास हजार आर्यिकाए, तीन लाख श्रावक ओर पाच लाख श्राविकाए थीं। आपने कैलाश पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया। आदेय - नामकर्म - 1 जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर प्रभायुक्त होता है उसे आदेय - नामकर्म कहते है । 2. जिस कर्म के उदय से जीव के बहुमान्यता उत्पन्न होती हे वह आदेय नामकर्म कहलाता है। आधिकरणिकी क्रिया - हिसा के साधनो या उपकरणों को ग्रहण करना आधिकरणिकी क्रिया हे । जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 89
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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