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आतप - नामकर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर मे आतप उत्पन्न होता है वह आतप नामकर्म है। सूर्य के विमान आदि मे तथा सूर्यकान्त मणि आदि पृथिवीकाय मे आतप जानना चाहिए । अग्नि मूलत उष्ण होती है परंतु आतप - नामकर्म के उदय से सूर्य के बिब आदि मूलत शीतल होते है मात्र किरणे उष्ण होती हैं ।
आत्म-प्रवाद - जिसमे आत्म द्रव्य का और छह प्रकार के जीव समूहो का अस्ति नास्ति आदि विभिन्न प्रकार से निरूपण किया गया है वह आत्म-प्रवाद पूर्व नाम का आठवा पूर्व है ।
आत्मभूत लक्षण-जो वस्तु के स्वरूप में निहित हो अर्थात् उससे पृथक न किया जा सके उसे आत्मभूत - लक्षण कहते हैं । जैसे- अग्नि में उष्णता या जीव मे चेतना ।
आत्मा - जो यथासभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो मे वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है । आत्मा की तीन अवस्थाए है - बहिरात्मा, अतरात्मा और परमात्मा ।
आदान-निक्षेपण-समिति - पुस्तक, पीछी, कमण्डलु आदि उपकरण जो ज्ञान व सयम में सहायक है उन्हे देखभालकर और शोधन करके रखना तथा उठाना आदान-निक्षेपण समिति है । यह साधु का एक मूलगुण है ।
आदिनाथ - युग के प्रारभ मे हुए प्रथम तीर्थकर । ये कुलकर नाभिराय और उनकी रानी मरुदेवी के पुत्र थे । अयोध्या इनकी जन्मभूमि और राजधानी थी। इनका शरीर स्वर्ण की तरह आभावान और पाच सौ धनुष ऊचा था। चक्रवर्ती भरत और कामदेव बाहुबली इनके पुत्र 38,/ जैनदर्शन पारिभाषिक कांश