________________
आचार्य-1 जो स्वय साधु के योग्य आचरण करते है और अन्य साधुओ से भी यथायोग्य आचरण कराते है वे आचार्य है। 2 साधुओ को शिक्षा-दीक्षा देने वाले, उनके दोषो का निवारण करने वाले तथा अनेक विशिष्ट गुणो से युक्त सघनायक साधु को आचार्य कहते है। आचार्य-भक्ति-आचार्यों के प्रति जो गुणानुराग रूप भक्ति होती है उसे आचार्य-भक्ति कहते है। यह सोलह कारण भावना मे एक भावना है। अच्छेद्य-दोष-राजा, मत्री आदि का भय दिखाकर यदि साधु आहार प्राप्त करे तो यह अच्छेद्य नाम का दोष है। आजीव दोष-अपनी जाति, कुल आदि की विशेषता बताकर यदि साधु आहार प्राप्त करे तो यह आजीव नाम का दोष है। आज्ञाविचय-'जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रतिपादित आगम ही सत्य हे'-ऐसा चिन्तन करना अथवा जिनवाणी को प्रमाण मानकर सात तत्त्व, छह द्रव्य, पाच अस्तिकाय आदि के स्वरूप का विचार करना आज्ञाविचय नाम का धर्मध्यान है। आज्ञा-व्यापादिकी-क्रिया-शास्त्रोक्त आज्ञा का पालन न कर सकने के कारण उसका अन्यथा प्ररूपण करना आज्ञा-व्यापादिकी-क्रिया है। आज्ञा-सम्यग्दर्शन-जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा को प्रधान मानकर जो सम्यग्दर्शन होता हे उसे आज्ञा-सम्यग्दर्शन कहते है। आतप-जो सूर्य आदि के निमित्त से उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 37