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उनके यह आक्रोश-परीषह-जय है। आक्षेपिणी कथा-जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गए तत्त्वो का कथन करने वाली आक्षेपिणी कथा है। आगम-जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए हितकारी वचन ही आगम है। आगम, सिद्धान्त और प्रवचन-ये एकार्थवाची है। आग्नेयी-धारणा-पार्थिवी-धारणा के उपरात योगी निश्चल अभ्यास से अपने नाभि-मडल मे सोलह पत्तो से युक्त कमल का ध्यान करे फिर उस कमल की कर्णिका मे महामत्र र्ह का तथा सोलह पत्तो पर अ आइ ई उ ऊ ऋ ऋ लु ल ए ऐ ओ औ अ अ -इन सोलह अक्षरो का ध्यान करे, फिर महामत्र हूँ की रेफ से मद-मद निकलती धुए की शिखा का विचार करे, फिर निकलती हुई चिनगारियो और अग्नि की लपटो का चिन्तवन करे। फिर योगी मुनि अपने हृदय मे स्थित आठ पत्तो के कमल पर लिखे आठ कर्मो को उस अग्नि की ज्वाला मे निरतर जलता हुआ चितन करे। उस कमल के जलने के उपरात शरीर के बाह्य मे चारो ओर त्रिकोण अग्नि का चिन्तवन करे। यह बाहर का अग्निमडल अतरग की मत्राग्नि को जलाता है और उस नाभिकमल और शरीर को नष्ट करके धीरे-धीरे शात हो जाता है। ऐसा चिन्तवन करना आग्नेयी धारणा है। आचाम्ल-काजी या माड सहित केवल भात के आहार को आचाम्ल कहते है। आचाराङ्ग-जिसमे पाच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप मुनिचर्या का वर्णन किया गया है वह आचारा है। 36 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश