________________
जानी है तथा मनुष्या में तप आदि के फलस्वरूप प्राप्त होती है। अगश्य-नो वस्तु मनुष्या के खाने वाग्य नहीं है ऐमी अग्वाद्य वस्तुआ का अन्य कान है। अमन्य वस्तु पाच प्रकार की है-त्रसवात, मादक, वात, अनिष्ट, अनुपसेव्य ।
अभवदान - प्राणीमात्र को सुरता और पेम देकर आश्वस्त करना अभयान लाता है ।
अभय-जा कभी भी मार के दुशा से छूटकर मात सुख प्राप्त नहीं नए जीव अमत्र्य कहलाते है ।
अभाव-नशन में वस्तु का गर्वथा अभाव नही माना गया, भावान्तर स्वभाप ही अभाव माना गया है। जैसे- मिथ्यात्व पयाय के अभाव at area of रूप में प्रतिभास हाता है। अभाव चार प्रकार का - प्रागभाव, पव्वसामाव, अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव । किसी द्रव्य की वतमान पर्याय का पूर्व पर्याय में अभाव होना प्रागभाव है। आगामी पर्याय में वर्तमान पर्याय का अभाव होना प्रध्वसाभाव हे । एक द्रव्य की एक पर्याय का उसकी दूसरी पर्याय में अभाव होना अन्योन्याभाव है । एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का अभाव होना अत्यन्ताभाव कहलाता है ।
अभिनन्दन नाय-चोथे तीर्थकर । इक्ष्वाकुवश मे राजा स्वयवर ओर रानी सिद्धार्था के यहा उत्पन्न हुए। इनकी आयु पचास लाख वर्ष पूर्व ओर ऊचाई तीन सो पचास धनुष थी । समस्त शुभ लक्षणो से युक्त इनका शरीर स्वर्ण के समान आभावान था। राज्य करते हुए साढ़े छत्तीस लाख वर्ष पूर्व काल वीत जाने पर एक दिन अचानक
22 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश