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रूप उत्सर्ग-मार्ग में सहायक आहार, विहार, पठन-पाठन आदि शुभ प्रवृत्ति रूप है।
अपाय - विचय- 'ससारी जीव मिध्यामार्ग से केसे बचे' - इस प्रकार निरतर चितन करना अथवा जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बताए गए सन्मार्ग का निरतर चितन करना अपाय -विचय या उपाय -विचय नामक धर्मध्यान हे ।
अपूर्वकरण - मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय करने वाले जीव के अन्तर्मुहूर्त तक प्रति समय जो अत्यत विशुद्ध अपूर्व परिणाम होते हे वह अपूर्वकरण है ।
अपूर्वकरण- गुणस्थान - मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय करके जो जीव उपशम या क्षपक श्रेणी चढते हे उस समय जिस गुणस्थान मे सभी जीवां के अपूर्व परिणाम होते हे वह अपूर्वकरण नामक आठवा गुणस्थान है ।
अप्रतिघात-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधुजन पर्वत, शिला, वृक्ष आदि के आरपार गमन करने में सक्षम होते है वह अप्रतिघात ऋद्धि कहलाती है ।
अप्रतिष्ठित प्रत्येक - देखिए प्रत्येक वनस्पति ।
अप्रत्याख्यान - क्रिया- त्याग करने का भाव नहीं होना अप्रत्याख्यान क्रिया है ।
अप्रत्याख्यानावरण कषाय-जिसके उदय में जीव देशसयम अर्थात् अणुव्रत धारण नहीं कर पाता वह अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहलाती
20 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश