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श्रुतावर्णवाद-“मदिरा, मास, मधु, रात्रिभोजन आदि पापाचरण शास्त्र-सम्मत है"-ऐसा कहना श्रुत का अवर्णवाद है। श्रेयासनाथ-ग्यारहवे तीर्थकर । ये सिहपुर नगर के इक्ष्वाकुवशी राजा विष्णु और रानी नन्दा के पुत्र थे। इनकी आयु चौरासी लाख वर्ष की थी। ऊचाई अस्सी धनुष थी। शरीर स्वर्ण के समान आभा वाला था। इन्होने बयालीस लाख वर्ष तक राज्य किया। एक दिन वसन्त ऋतु के परिवर्तन को देखकर इन्हे वैराग्य हो गया और इन्होने जिनदीक्षा ले ली। दो वर्ष की कठिन तपस्या के उपरान्त इन्हे केवलज्ञान हुआ। इनके सघ मे सतहत्तर गणधर, चौरासी हजार मुनि, एक लाख बीस हजार आर्यिकाए, दो लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाए थीं। इन्होने सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया। श्रोता-शास्त्र के अर्थ को ठीक-ठीक ग्रहण और धारण करने वाले विनयवान व सदाचारी पुरुष श्रेष्ठ श्रोता कहलाते है। श्रोता मुख्यत तीन प्रकार के है-जो केवल सारभूत वस्तु को ग्रहण करते हैं वे हस के समान उत्तम-श्रोता है। जो शास्त्र सुनते समय गीली मिट्टी के समान कोमल होते है बाद मे कठोर परिणामी हो जाते हे वे मध्यम श्रोता है। जो गुणो को छोडकर सिर्फ अवगुण ग्रहण कर लेते हे वे जौक के समान अधम-श्रोता हैं। श्रोत्र-इन्द्रिय-जिसके द्वारा प्राणी सुनता हे उसे श्रोत्र-इन्द्रिय कहते
296 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश