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सकल-दत्ति-अपने वश की प्रतिष्ठा के लिए अपने किसी योग्य पुत्र को कुल-पद्धति ओर धन के साथ अपना कुटुम्ब समर्पित करना सकल-दत्ति या अन्वयदत्ति कहलाता है। सचित्त-आत्मा के चैतन्य विशेष परिणाम को चित्त कहते है।जो चित्त सहित है वह सचित्त कहलाता है। सूखने पर या अग्नि पर पकाये जाने पर वनस्पति आदि पदार्थ अचित्त या प्रासुक हो जाते है। सचित्त-त्याग-प्रतिमा-प्रोषधोपवास नामक चौथी प्रतिमा धारण करने के उपरान्त कच्चे जल, फल-फूल आदि का त्याग करके प्रासुक जल, फल-फूल आदि ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना श्रावक की पाचवी सचित्त-त्याग-प्रतिमा है। सत्-1 सत् शब्द का प्रयोग अनेक अर्थो मे होता है। यहा सत् का अर्थ सत्त्व हे अर्थात् सत् शब्द अस्तित्व का वाचक है। गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओ मे सम्यग्दर्शन आदि 'कहा है, कहा नहीं है। यह सूचित करने के लिए सत् का ग्रहण किया जाता है। 2 जो उत्पाद, व्यय और धोव्य से युक्त है वह सत् है। सत्कार-पुरस्कार-परीपह-जय-सत्कार का अर्थ पूजा-प्रशसा है तथा क्रिया के आरभ आदि मे आगे करना या निमत्रण देना पुरस्कार है। तपस्वी, ज्ञानवान ओर चिरकाल से दीक्षित होते हुए भी आदर सत्कार नहीं मिलने पर जो साधु मन को कलुषित नहीं होने देता और समतापूर्वक अनादर को सहन करता है उसके सत्कार-पुरस्कार
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 297