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शक्तितस्तप-अपनी शक्ति को न छिपाते हुए मोक्षमार्ग के अनुकूल कायक्लेश आदि तप करना शक्तितस्तप कहलाता है। यह सोलहकारण भावना मे एक भावना है।
शक्तितस्त्याग- अपनी शक्ति के अनुरूप दान देना शक्तितस्त्याग भावना है । यह सोलहकारण भावना मे एक भावना है।
शङ्कित- दोष- 'यह आहार आगमानुसार मेरे लेने योग्य है या नहीं', इस प्रकार सन्देह होने पर भी यदि साधु उसे ग्रहण करे तो यह शङ्कित नाम का दोष है ।
शब्द- गारव - 'मेरे समान शब्दो का स्पष्ट उच्चारण करने वाला कोई नहीं है' ऐसा अपना बडप्पन बताना शब्द - गारव है ।
शब्द-नय-व्याकरण के अनुसार सिद्ध कर लिए गए शब्द का थायोग्य प्रयोग करना शब्द - नय है । अथवा शब्द के माध्यम से अर्थ का बोध कराने वाला शब्द-नय है। शब्द नय मे पर्यायवाची विभिन्न शब्दो का प्रयोग होने पर भी एक ही अर्थ का कथन किया जाता है । जैसे- इन्द्र, शक्र, पुरन्दर आदि पर्यायवाची शब्दो का एक ही अर्थ है परन्तु यह एकार्थता समान काल लिग आदि वाले शब्दों में है सब पर्यायवाची शब्दो मे नहीं । शब्दनय के कथन मे इसका भी विचार किया जाता है ।
शब्द- समय - वर्ण, पद व वाक्य रूप आगम को शब्द- समय या शब्द- आगम कहते हैं। शब्द- समय द्रव्यश्रुत रूप है ।
230 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश