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________________ व्यञ्जनाचार - अक्षर, पद, वाक्य आदि का शुद्ध पाठ करना व्यञ्जनाचार है । व्यञ्जनावग्रह - देखिए अवग्रह | व्यन्तर- भूत, पिशाच आदि जाति के देवो को जैनागम मे व्यन्तर- देव कहा गया है। इनका निवास अधिकतर मध्यलोक मे खडहर आदि सूने स्थानो मे रहता है। मनुष्य व तिर्यचो के शरीर मे प्रवेश करके ये देव उन्हे लाभ-हानि पहुचा सकते हे। अन्य देवो के समान इनका भी बहुत वैभव और परिवार आदि होता है। किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच-ये आठ प्रकार के व्यन्तर-देव हैं। व्यय-द्रव्य की पूर्व - पर्याय का विनाश होना व्यय कहलाता है। व्यवहार-काल- समय, निमेष, घडी, घटा, दिन, रात, मास, वर्ष आदि को व्यवहार काल कहते है । व्यवहार - चारित्र - व्रत आदि का पालन करना व्यवहार चारित्र हे अथवा मन, वचन, काय से समस्त पाप-क्रियाओ का त्याग करना व्यवहारचारित्र है । व्यवहार चारित्र, सराग-सयम, शुभोपयोग, अपहत-सयम, एकदेश परित्याग या अपवाद मार्ग ये सभी एकार्थवाची है। व्यवहार-नय- सग्रह-नय के द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थो का विधिपूर्वक भेद करना व्यवहार-नय है । जैसे- सग्रह-नय के विषयभूत द्रव्य में जीव व अजीव द्रव्य ऐसे दो भेद करना। उसमें भी देव, मनुष्य आदि जोव के भेदो का आश्रय लेकर व्यवहार करना। वह दो प्रकार जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 227
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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