________________
झूठ, चोरी या अज्ञान आदि से मुक्ति प्राप्त होती है ऐसा मानना विपरीत-मिथ्यात्व है। विपर्यय-देखिए विभ्रम। विपाक-कर्म के फल को विपाक कहते है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव
ओर भाव के निमित्त से उत्पन्न हुआ कर्म का विविध प्रकार का पाक अर्थात् फल ही विपाक कहलाता है। इसी को अनुभव भी कहते है। विपाक-विचय-ससार मे जीवो को जो एक ओर अनेक भव मे पुण्य
और पाप-कर्म का फल प्राप्त होता रहता हे उसका बार-बार चिन्तवन करना विपाक-विचय नाम का धर्म-ध्यान है। विपाक-सूत्राङ्ग-जिसमे पुण्य और पाप के विपाक अर्थात् फल का वर्णन किया गया है वह विपाक-सूत्राङ्ग है। विपुलमति-विपुल का अर्थ विस्तीर्ण है। जो दूसरे के मन मे स्थित सरल ओर कुटिल सव वातो को जान लेता है वह विपुलमति मन -पर्यय-ज्ञान हे। आशय यह है कि विपुलमति मन पर्यय ज्ञान के द्वारा सरल ओर कुटिल मन, वचन, कायगत अर्थ को तथा चिन्तित, अर्धचिन्तित, अचिन्तित व विपरीत चिन्तित सब प्रकार के चिन्ता, जीवन-मरण, दुख-सुख आदि को जाना जा सकता है। विभाव-स्वभाव से विपरीत परिणमन करना विभाव है। कर्म के उदय से होने वाले जीव के रागादि भावो को विभाव कहा गया है। विभाव-पर्याय-'पर' द्रव्य के निमित्त से होने वाली पर्याय को विभाव-पर्याय कहते हे जेसे-जीव की देव, मनुष्य, तिर्यंच आदि 220 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश