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विद्याधर-विजयार्द्ध पर्वत पर निवास करने वाले मनुष्य विद्याधर कहलाते है। विद्याधर लोग जाति, कुल और तप-इन तीन प्रकार की विद्याओ और देवपूजा, गुरूपास्ति आदि षट्कर्म से सम्पन्न होते है। विद्यानुप्रवाद-जिसमे सर्व विद्याओ, आठ महानिमित्तो, क्षेत्र, श्रेणी, लोक-प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का वर्णन किया गया है वह विद्यानुप्रवाद-पूर्व नाम का दसवा पूर्व है। विधान-विधान का अर्थ प्रकार या भेद है। विनय-पूज्य पुरुषो का आदर करना विनय-तप है अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले पुरुषो के प्रति नम्रता धारण करना विनय है। विनय पाच प्रकार की है-ज्ञान-विनय, दर्शन-विनय, चारित्र-विनय, तप-विनय और उपचार-विनय। उपचार विनय तीन प्रकार की हे-कायिक, वाचिक और मानसिक विनय। विनय-सम्पन्नता-मोक्ष के साधनभूत सम्यग्ज्ञान आदि का और उसके साधक गुरुजनो का यथायोग्य रीति से आदर-सत्कार करना तथा कषाय की निवृत्ति करना विनय-सम्पन्नता है। यह सोलह कारण भावना मे एक भावना है। विनयाचार-मन, वचन, काय की शुद्धिपूर्वक शास्त्र को पढना विनयाचार है।
विपरीत-मिथ्यात्व-1 वस्त्र आदि परिग्रह से युक्त साधु को भी निर्ग्रन्थ मानना, केवली भगवान को कवलाहारी मानना तथा स्त्री भी सिद्ध होती है-ऐसी विपरीत मान्यता होना विपरीत-मिथ्यात्व है। 2 हिसा,
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 219