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विजिगीषु-कथा-वादी और प्रतिवादी मे अपने पक्ष को स्थापित करने के लिए हार-जीत होने तक जो परस्पर चर्चा होती हे उसे विजिगीषु कथा कहते है ।
विडौषधि - ऋद्धि-जिसके प्रभाव से साधु का मल-मूत्र भी जीवो के रोगो को नष्ट करने में समर्थ होता है उसे विडोषधि ऋद्धि कहते है । विदारण- क्रिया- दूसरे के पापकर्म को प्रकाशित करना विदारण-क्रिया है ।
विदेह - देह रहित सिद्ध भगवान विदेह कहलाते है । अथवा देह मे रहते हुए भी जो जन्म मरण से रहित है ऐसे अर्हन्त भगवान विदेह है ।
विदेह - क्षेत्र-जम्बूद्वीप मे एक, धातकीखण्ड मे दो और पुष्करार्ध मे दो ऐसे पाच विदेह - क्षेत्र हे । इनमे प्रत्येक के बत्तीस-बत्तीस देश है । इस प्रकार अढाई द्वीप मे कुल एक सौ साठ विदेह देश है । यहा मनुष्यो की ऊचाई पाच सौ धनुष और आयु एक कोटि वर्ष पूर्व होती है । तीर्थकर आदि शलाका-पुरुष और ऋद्धिधारी साधुओ का समागम सदा बना रहता है। प्रत्येक विदेह - देश मे तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि शलाका पुरुष यदि अधिक-से-अधिक होवे तो एक-एक होते है अर्थात् कुल एक सौ साठ होते है । यदि कम-से-कम होवे तो एक विदेह-क्षेत्र मे चार और पाचो विदेह में बीस तीर्थकर सदा विद्यमान रहते है । यहा विदेही जन अर्थात् अर्हन्त भगवान सदा विद्यमान रहते है । इसलिए इसका विदेह नाम सार्थक है ।
विद्या- दोष- यदि साधु विद्या या मन्त्र आदि से आमंत्रित देवो के द्वारा आहार ग्रहण करे तो यह विद्या नामक दोष है ।
218 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश