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पदार्थ को जानने रूप विकल्प होता रहता है।
विक्रिया-छोटा, वडा, हल्का, भारी आदि अनेक प्रकार का शरीर वना लेना विक्रिया कहलाती है। यह दो प्रकार की हे-पृथक्-विक्रिया और अप्रधक् या एकत्व-विक्रिया। देव व नारकी जीवों को, तेजस्कायिक, वायुकायिक जीवों को तथा साधु को विक्रिया करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है।
विक्षेपणी-कथा-मिथ्या-मतो का निराकरण या शोधन करने वाली विक्षेपणी-कथा है।
विग्रहगति-विग्रह का अर्थ शरीर हे। पूर्वभव के शरीर को छोडकर दूसरे नवीन शरीर को ग्रहण करने के लिए जीव जो गमन करता है उसे विग्रहगति कहते है। यह दो प्रकार की होती हे-मोडेवाली गति और विना मोडे वाली गति।
विजया पर्वत-वह एक रमणीय पर्वत है। इस पर विद्याधरी का निवास है। यह पच्चीस योजन ऊचा, पचास योजन चोडा और सवा रह योजन गहरा है। इसका रंग चादी के समान है। जम्बूद्वीप में विदेह सम्बन्धी बत्तीस तथा भरत और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी एक-एक ऐसे चोनीम विजयार्ध पर्वत है। यहा कर्मभूमि के योग्य षट्कर्म होते है। विपता यह है कि यहा विद्याधर-मनुष्यों को जन्म से प्राप्त विद्याए
गनुसार फल देती है और सदा चाथा काल रहता है। चक्रवर्ती क. विजय-शेर को आधी नीमा इसी पर्वत के द्वारा निर्धारित होती P ATम पयत का नाम विजयाद्र-पर्वत रखा गया है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 17