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के समय जो विजली की चमक के समान क्षण भर को दिखाई देता है उस साधु के यह याचना-परीषह-जय है। योग-मन, वचन और काय के द्वारा होने वाले आत्म-प्रदेशो के परिस्पन्दन को योग कहते है। अथवा मन, वचन, काय की प्रवृत्ति के लिए जीव का प्रयल विशेष ही योग कहलाता है। योग तीन प्रकार का है-मनो-योग, वचन-योग और काय-योग। ये तीनो योग शुभ व अशुभ दोनो रूप होते हैं। योजन-चार कोस का एक योजन होता है। दो हजार कोस का एक महायोजन होता है। योजन का प्रयोग जीवो के शरीर, नगर, मंदिर आदि को मापने मे होता है तथा महायोजन के द्वारा पर्वत, द्वीप, समुद्र आदि को मापते है। योनि-जिसमे जीव जाकर उत्पन्न होता है उसे योनि कहते है। सचित्त, अचित्त, शीत, उष्ण, सवृत, विवृत आदि के भेद से योनि अनेक प्रकार की है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि जाति के भेद से योनि के चौरासी लाख भेद है।
204 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश