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बोलने मे आनन्द मानना मृषानन्दी नाम का रौद्रध्यान है ।
मेघचारण ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु बादलो मे स्थित जलकायिक जीवो को विराधना न करते हुए उनके ऊपर से जाने मे समर्थ होते है, उसे मेघचारण ऋद्धि कहते है ।
मैत्री - दूसरे को दुख न हो ऐसी भावना रखना मैत्री है।
मैथुन -संज्ञा - राग के वशीभूत होकर स्त्री और पुरुष मे जो परस्पर कामसेवन की इच्छा होती है उसे मेथुन सज्ञा कहते है ।
मोक्ष - समस्त कर्मों से रहित आत्मा की परम विशुद्ध अवस्था का नाम मोक्ष है। जब आत्मा कर्म मल कलक और शरीर को अपने से सर्वथा जुदा कर देता है तब उसके जो स्वाभाविक अनन्त ज्ञानादि गुण रूप और अव्याबाध सुख रूप अवस्था उत्पन्न होती है उसे मोक्ष कहते है ।
मोक्षमार्ग - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - इन तीनो की एकता ही मोक्षमार्ग है । निश्चय और व्यवहार के भेद से मोक्षमार्ग दो प्रकार का है। निश्चय - मोक्षमार्ग निर्विकल्प निजशुद्धात्म तत्त्व के सम्यक् श्रद्धान्, ज्ञान और अनुचरण रूप अभेद रत्नत्रयात्मक है तथा जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए सात तत्त्वो के श्रद्धान व ज्ञान तथा अहिसा आदि व्रतो के पालन रूप भेदरत्नत्रयात्मक व्यवहार- मोक्षमार्ग हे । व्यवहार मोक्षमार्ग को निश्चय - मोक्षमार्ग का साधन माना गया है क्योंकि कोई भी साधक पहले सविकल्प रहकर ही आगे निर्विकल्पता को प्राप्त करता है ।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 201