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मिश्रदोष-प्रासुक तेयार हुआ आहार अन्य वेपधारियो तथा गृहस्थो के साथ-साथ सयमी साधुओ को भी देने का सकल्प करना मिथदोप
मुनि-मनन मात्र भाव-स्वरूप होने से साधु को मुनि कहते है। अथवा अवधिज्ञानी, मन पर्ययज्ञानी और केवलज्ञानियो को मुनि कहा है। श्रमण, सयत, ऋषि, मुनि, यति, साधु, वीतराग, अनगार ये सभी एकार्थवाची शब्द है। मुनिसुव्रतनाथ-बीसवे तीर्थकर । मगध देश के राजगृह नगर मे राजा सुमित्र और माता सीमा के यहा इनका जन्म हुआ। इनकी आयु तीस हजार वर्ष थी और शरीर वीस धनुष ऊचा मयूरकठ के समान नीली आभा वाला था। पद्रह हजार वर्ष तक राज्य करने के उपरात यागहस्ती नामक हाथी को देशव्रतो का पालन करते देखकर इन्हे वेराग्य हो गया और गृहत्याग कर जिनदीक्षा ले ली। ग्यारह माह की तपस्या के उपरात इन्हे केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इनके सघ मे अठारह गणधर, तीस हजार मुनि, पचास हजार आर्यिकाए, एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाए थीं। इन्होने सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया। मुमुक्षु-मोक्ष की इच्छा रखने वाले भव्य जीवो को मुमुक्षु कहते है। यह तीन प्रकार के होते है-परोपकार को प्रधानता देकर अपना उपकार करने वाले, अपने उपकार की प्रधानता से परोपकार करने वाले और मात्र अपना उपकार करने वाले। मुहूर्त-दो घडी अर्थात् अडतालीस मिनिट का एक मुहूर्त होता है। मूक-केवली-केवलज्ञान के उपरात जिनकी दिव्यध्वनि नहीं होती वे
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 199