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है।
मार्ग- प्रभावना - ज्ञान, ध्यान, तप और जिनपूजा आदि के माध्यम से जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बताए गए मोक्षमार्ग को प्रकाशित करना मार्ग-प्रभावना है। यह सोलह कारण भावना मे एक भावना है। मार्ग- सम्यग्दर्शन - वीतराग - मोक्षमार्ग के सुनने मात्र से जो सम्यग्दर्शन होता है वह मार्ग - सम्यग्दर्शन है।
मार्दव- मृदुता का भाव होना मार्दव है । अथवा मान के अभाव का नाम मार्दव है । अथवा अपने कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप आदि का अभिमान नहीं करना मार्दव-धर्म है ।
मालारोहण - लकडी की बनी हुई सीढी या पैडी से ऊपर चढकर वहा रखे हुए लड्डू आदि लाकर साधु को आहार मे देना मालारोहण नाम का दोष है ।
मित्र - जो निस्वार्थ भाव से हित करे वह मित्र है अथवा जो पाप से बचाए वह मित्र है |
मिथ्या एकान्त-अनेक धर्मात्मक वस्तु के किसी एक ही धर्म का कथन करके शेष सभी धर्मों का निषेध कर देना मिथ्या एकात है। मिथ्याचारित्र - अर्हन्त भगवान के द्वारा बताए गए वीतराग मोक्षमार्ग से विपरीत मार्ग पर चलना मिथ्याचारित्र है ।
मिथ्याज्ञान- मिथ्यात्व के सद्भाव मे होने वाला ज्ञान, मिथ्याज्ञान कहलाता है । जिस प्रकार कडवी तूमडी मे रखा हुआ दूध कडवा हो जाता है उसी प्रकार मिथ्यादर्शन के निमित्त से मतिज्ञान आदि मिथ्या
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश /