________________
मानस-आहार-देवा को आहार की इच्छा हात ही कण्ट मे अमृत झग्ने लगता है। यह मानम-आहार कहलाता है। मानसिक-विनय-धर्म-कार्य में मन लगाना तथा पाप कार्य क विचार से मन को बचाना मानसिक-विनय है। अथवा पूज्च पुरुषों के प्रति आदर-भाव रखना मानसिक-विनय है।
मानस्तम्भ-तीर्थकरी क समवसरण में प्रवेश करने से पहले प्रत्येक दिशा में जो तीर्थकर के शरीर की ऊचाई से बारह गुनी ऊची स्तम्भ के आकार की सुदर रचना होती है उसे मानस्तम्भ कहते है। चूंकि दूर से ही इसके दर्शन मात्र से मिथ्यादृष्टि जीव अभिमान से रहित हो जात हे अत इसका मानस्तम्भ नाम सार्थक है। सभी मानस्तभ मून में वजदागे म युक्त होने है, मध्य-भाग में वृत्ताकार होते है और ऊपर चारो दिशाओं में चमर, घण्टा आदि से विभूषित एक-एक जिन-प्रतिमा से युक्त होते है। अकृत्रिम चैत्यालयों में भी इसी तरह मानस्तम्भ की रचना होती है। मानुपोत्तर पर्वत-मध्यलोक म पुष्करवर द्वीप के बीचोंबीच चूड़ी के समान गोल आकार वाला मानुपांतर पर्वत है। वह अनादि-अनिधन है। इस पर्वत के बाहर मनुष्यों का गमन नहीं होता। माया-माया का अर्ध एल, कपट या कुटिलता है। दूसरे का ठगने के लिए जो एन्न, कपट आदि किए जाते है वह माया है।
माया-किया-पान-दर्शन आदि के विषय में उन्न करना माया-क्रिया
अनशन पारिभाषिक रोग : 147