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के अभाव मे छयासठ दिन तक इनकी टिव्यध्वनि नहीं हुई। इन्द्रभूति गोतम के आने पर और शिष्यत्व स्वीकार करने पर दिव्यध्वनि प्रारम हुई। इनके सघ मे इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर, चोदह हजार मुनि, छत्तीस हजार आर्यिकाए, एक लाख श्रावक व तीन लाख श्राविकाए थीं। इन्होने पावापुर से मोक्ष प्राप्त किया।
महाव्रत-हिसादि पाच पापो का मन, वचन, काय से जीवन-पर्यंत के लिए त्याग करना महाव्रत है। अहिसा, सत्य, अचोर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाच महाव्रत हैं।
महिमा-ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अपने शरीर को मेरुपर्वत के वरावर बनाने में समर्थ होते हे वह महिमा-ऋद्धि है।
मासादि-दर्शन-आहार के समय यदि साधु को मासादि दिख जाए तो यह मासादि-दर्शन नाम का अतराय है।
माध्यस्थ-भाव-रागद्वेषपूर्वक पक्षपात नहीं करना माध्यस्थ-भाव है। माध्यस्थ, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्य, वीतरागता ये सभी एकार्थवाची शब्द हैं। मान-1 दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न होना मान है। अथवा दूसरे के प्रति तिरस्कार रूप भाव होना मान कहलाता है।2 मान का अर्थ तौल या माप भी है।
मानदोष-साधु यदि अभिमान प्रगट करके आहार लेता है तो यह मान नामक दोष है। 194 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश