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प्राप्त किया ।
महाकल्प - काल और सहनन की अपेक्षा साधु के योग्य द्रव्य, क्षेत्र आदि का वर्णन करने वाला महाकल्प या महाकल्प्य नाम का अङ्गबाह्य है ।
महापुण्डरीक - जिसमे समस्त इन्द्र और प्रतीन्द्रो मे उत्पन्न होने मे कारणभूत तपश्चरण आदि का वर्णन किया गया हो वह महापुण्डरीक नाम का अङ्गबाह्य है ।
महापुरुष - 1 जो पीडित किए जाने पर भी कठोर वचन या अपशब्द नहीं बोलते वह महापुरुष है। 2 जैनागम मे चौबीस तीर्थकर, नौ प्रतिनारायण, नौ वलभद्र, वारह चक्रवर्ती, चौबीस' कामदेव, चौदह कुलकर, ग्यारह रुद्र, नो नारद और तीर्थकर के माता-पिता - ये एक सौ उन्हत्तर महापुरुष कहे गए है ।
महावीर - स्वामी - अंतिम चोवीसवे तीर्थकर । ये वैशाली के राजा सिद्धार्थ की रानी प्रियकारिणी (त्रिशला) के पुत्र थे । इनकी आयु बहत्तर वर्ष की थी और शरीर सात हाथ ऊचा था । निरतर वढने वाले गुणो के कारण ये वर्धमान कहलाते थे । सगम देव ने जब इन पर उपसर्ग किया तब इनकी निर्भयता देखकर इन्हे महावीर कहा । तीव्र तपश्चरण करने से ये लोक मे अतिवीर कहलाये । सजय-विजय नाम के ऋद्धिधारी मुनियो को इनके दर्शन से समाधान मिला इसलिए इन्हे सन्मति नाम दिया गया। शरीर का अनन्त बल देखकर इन्हे 'वीर' कहा गया । तीस वर्ष की अवस्था मे इन्होने जिनदीक्षा ग्रहण की । बारह वर्ष की तपस्या के उपरात इन्हे केवलज्ञान हुआ । गणधर जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 198