________________
मध्य-लोक-समूचा लोक तीन भागों में विभक्त है । इसके मध्य भाग को मध्य-लोक कहते है । मध्य-लोक एक राजू चौडा और एक लाख योजन ऊचा है। यह चूडी के आकार का है। इसमे अनगिनत द्वीप और समुद्र है जो परस्पर एक दूसरे से घिरे हुए है । मध्यलोक के बीचो-बीच एक लाख योजन अर्थात् चालीस करोड मील व्यास वाला प्रथम जम्बूद्वीप स्थित है। जम्बूद्वीप को घेरे हुए दो लाख योजन विस्तार वाला लवण समुद्र है । फिर घातकीखण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र, पुष्करवर द्वीप और अत मे स्वयभूरमण द्वीप और स्वयभूरमण समुद्र है । मनुष्य और तिर्यच जीव इस मध्यलोक मे ही पाए जाते है ।
मन-नाना प्रकार के विकल्प - जाल को मन कहते है । अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि करना, यह मन का कार्य है । मन को अनिन्द्रिय या अन्त करण भी कहते है । मन दो प्रकार का हे - द्रव्य-मन और भाव - मन । हृदय में आठ पाखुरी वाले कमल के आकार की पुद्गल सरचना रूप द्रव्य-मन है तथा जिसके द्वारा स्मृति, शिक्षा, आलाप आदि का ग्रहण होता है वह भाव -मन है ।
मन-शुद्धि - आहारदान देते समय ईर्ष्या, क्रोध आदि अशुभ भावो से दूर रहना और श्रद्धा, विनय आदि शुभ भाव रखना यह दाता की मन-शुद्धि है।
मन. पर्यय-जो दूसरे के मन का आलम्बन लेकर उस मन मे स्थित पदार्थ को स्पष्ट रूप से जान लेता है वह मन पर्यय ज्ञान कहलाता है । मन पर्यय ज्ञान ऋद्धिधारी मुनि को ही होता है। यह दो प्रकार का है - ऋजुमति और विपुलमति ।
190 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश