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________________ म मङ्गल - जो पापरूपी मल को गलाता है अथवा जो सुख या पुण्य को लाने वाला है वह मङ्गल कहलाता है। अर्हन्त आदि का गुणगान करना पारलौकिक मगल है । पीली सरसो, पूर्णकलश आदि लौकिक मगल है । कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए, इच्छित फल की प्राप्ति के लिए, शिष्टाचार के पालन के लिए और पुण्य वर्धन के लिए ग्रथ के प्रारभ मे मगल करने का विधान है। ग्रंथ के प्रारभ मे मंगल दो प्रकार से किया जाता है - निवद्ध मगल और अनिवद्ध मगल । मज्जानुराग-साधर्मी जनो के प्रति ऐसा सुदृढ अनुराग होना जो विपत्ति या विषम परिस्थिति आने पर भी परस्पर अस्थि व मज्जा के समान न छूटे अर्थात् बना रहे, इसे भज्जानुराग कहते है । मतिज्ञान- इन्द्रिय व मन की सहायता से होने वाला ज्ञान मतिज्ञान है । अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा - मतिज्ञान के भेद हे और मति, स्मृति, सज्ञा, चिता, अभिनिवोध, प्रतिभा, बुद्धि, मेधा आदि इसके अपर नाम है। मद-ज्ञान आदि के आश्रय से अपना बडप्पन जताना मद कहलाता है। यह आठ प्रकार का है - ज्ञान-मद, पूजा-मद, कुल-मद, जाति-मद, बल-मद, रूप-मद, तप-मद और ऋद्धि-मद । मधुस्रावी ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के हाथ मे दिया गया रूखा-सूखा आहार भी मीठे स्वाद वाला हो जाता है उस मधुस्रावी ऋद्धि कहते है । जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 189
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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