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भ
भक्त - प्रत्याख्यान - शास्त्र मे कही गई विधि के अनुरूप क्रमश आहार का त्याग करके स्वत और दूसरे के द्वारा भी शरीर की यथायोग्य सेवा-वैय्यावृत्ति कराते हुए जो समाधि-मरण किया जाता है वह भक्त-प्रत्याख्यान नामक सल्लेखना कहलाती है ।
भक्ति - अर्हन्त आदि के गुणो मे अनुराग रखना भक्ति है ।
भद्र - मिथ्यात्व के मद उदय में जो जीव समीचीन जिनधर्म से द्वेष नहीं करता उसे भद्र कहते है ।
भद्रा - वाचना - तर्कसगत समाधान देते हुए जिनागम मे कहे गए जीवादि तत्त्व की व्याख्या करना भद्रा - वाचना हे ।
भय - जिस कर्म के उदय से जीव भय का कारण मिलते ही भयभीत हो जाता है वह भय नामक नो-कषाय है । भय सात प्रकार का हे - इहलोक, परलोक, अत्राण, अगुप्ति, मरण, वेदना ओर आकस्मिक भय ।
भय - संज्ञा - अत्यत भय से उत्पन्न जो भागकर कहीं छिप जाने की इच्छा है उसे भय - सज्ञा कहते है ।
भरत - ये प्रथम चक्रवर्ती थे। अयोध्या के राजा तीर्थकर ऋषभदेव इनके पिता और रानी यशस्वती इनकी माता थी । इन्होने छहो खण्ड पृथ्वी पर विजय प्राप्त की परन्तु अपने ही भाई बाहुवली से युद्ध मे हार गये थे । इनके साम्राज्य में ही सर्वप्रथम स्वयवर प्रथा का शुभारभ जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 181