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________________ आ था। इनकी नाम पर इगरेश का नाम भारतवपपदागिरकान तक गज्य करन क उपगन इनान जिनटीक्षा ले ली और अन्नमुहन मकवानजान प्राप्त रिया। उन आय चोगमी लारा वर्ष पूर्व थी। उन्हान नाग पयत पर नौगाम जिनालया का निमाण कराया और पाच गो धनत्र जी तोर स्पभव की प्रतिमा स्थापित कगयो। भरत-भैर- य मगण्डामधिमाजित है। इसमें पाय म्नस्टसाड और आप सभी शनाका पप भगत-त्र के आर्यखण्ड मन्मन्ननगग्त करती के नाम म इमका मरत-क्षेत्र नाम प्रनिद हुआ। अटाई द्वीप में पाच मरत-क्षेत्र है। भव-आयु कम उदय में जीव की जा मनुष्य, देव आदि पर्याय नीम पर कान।। मनुप्व, निर्वच, नरक और टेव-पे चार भवनाक-मरनगमा अन्तर और ज्यानिपा देव-तीनो भवनत्रिक कानात।। भवनवासी-जिममा म्वमाव भवनों में निवास करने का है वं भवनवामी दय कहलात है। भवनवासी देव दस प्रकार के 7-असुरक्रमार, नागकुमार, विद्युतकुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, यानमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, दीपकुमार ओर दिक्कुमार। भव-परिवर्तन-समागे जीवन नरक की छोटी से छोदी आयु से लेकर गंवयक विमान तक आयुक्रम स अनक वार भ्रमण किया है। नरक गति म जगन्य आयु दस हजार वप है। इस दस हजार वर्ष की आयु 7. माध काइ जीव प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ और आयु पूर्ण करके १५. जनदर्शन पारिमापिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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