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ब्रह्मचर्य-मेथुन या काममवन का त्याग करना ब्रह्मचर्य है । अथवा ब्रह्म का अथ आत्मा हे सा आत्मा मलीन हाना ब्रहाचय है। ब्रह्मचर्याणुव्रत-पगयी स्त्री का माता, बहिन आर पुत्री के समान मानना
और अपनी धर्मपली में मतुष्ट रहना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। ब्रह्मचर्य-प्रतिमा-रात्रि-भुक्ति-त्याग नामक छटवी प्रतिमा धारण करने के उपरात जीवन-पर्यन्त क लिए अपनी धर्मपत्नी में भी कामसेवन नहीं करने की पतिज्ञा लेना यह श्रावक को सातवीं ब्रह्मचर्य-प्रतिमा है। ब्रह्मर्पि-जो माधु बुद्धि-ऋद्धि आर ओपध-ऋद्धि से युक्त होते है वे ब्रहार्पि कहलाते है। ब्राह्मी-वं तीर्थकर पमंदंव आर गनी यशस्वती की पुत्री थी। ये शील और विनय में युक्त थी। इन्हाने अपने पिता में सर्वप्रथम लिपि-विद्या सीखी। आज अत्यत प्राचीन ब्राह्मी लिपि इन्ही के नाम से प्रचलित है। अल्प वय मे ही भगवान ऋपमदेव से दीक्षा लेकर आर्यिकाओ में श्रष्ट पद पाया।
150 / जनदर्शन पारिभापिक कोश