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बीज - पद - जिस प्रकार बीज ही वृक्ष के मूल, फल, शाखा, पत्र आदि का आधार है उसी प्रकार द्वादशाग जिनवाणी के आधारभूत जो पद हे वह बीज तुल्य होने से बीजपद कहलाते है ।
बीज - बुद्धि ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु की बुद्धि एक ही वीज-पद के आश्रय से सपूर्ण द्वादशाग को जानने और विचार करने समर्थ होती है उसे बीज - बुद्धि- ऋद्धि कहते है ।
वीज- सम्यक्त्व - जिन जीवादि पदार्थो का ज्ञान दुर्लभ है उनका किसी बीज पद के द्वारा ज्ञान प्राप्त होने पर जो सम्यग्दर्शन होता हे उसे बीज - सम्यक्त्व कहते है ।
बुद्धि - बुद्धि का अर्थ ज्ञान है । या जिसके द्वारा अर्थ जाना जाए उसे बुद्धि कहते है । यह इन्द्रियो के आलम्बन से उत्पन्न होती है ।
वोधि - सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र की प्राप्ति होना बोधि है ।
बोधिदुर्लभ - अनुप्रेक्षा- निगोद से निकलना, त्रस पर्याय पाना, और सज्ञी पचेन्द्रिय मनुष्य होना अत्यन्त दुर्लभ है। कदाचित् इसकी प्राप्ति हो जाए तो उत्तम देश, कुल और नीरोगता प्राप्त होना कठिन है । इस सबके मिल जाने पर भी विषय सुख से विरक्त होना, रत्नत्रय रूप वोधि को अगीकार करके तप की भावना करना, समाधि पूर्वक मरण को प्राप्त होना और केवलज्ञान पाना अति दुर्लभ है यही बोधि का सुफल है - ऐसा वार-बार विचार करना बोधिदुर्लभ - अनुप्रेक्षा है ।
वोधित - बुद्ध - जिनको परोपदेश पूर्वक ज्ञान की प्राप्ति होती है वे बोध - बुद्ध कहलाते है ।
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 179