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सज्ञी, मिथ्यादृष्टि, पर्याप्तक ओर सर्व विशुद्ध होना चाहिए । नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चारा ही गति के मिथ्यादृष्टि जीव प्रथमोपशम सम्यक्त्व उत्पन्न कर सकते है। प्रदेश-एक परमाणु आकाश में जितनी जगह घेरता हे उतने आकाश को एक प्रदेश कहते है। प्रदेशत्व-जिसके द्वारा द्रव्य का कोई न कोई आकार बना रहता है वह प्रदेशत्व गुण है। प्रदेशवय-1 कर्म-प्रकृतियों के कारणभूत प्रतिसमय योग-विशेष के द्वारा सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तानन्त पुद्गल परमाण सव आत्म-प्रदेशो में सवध को प्राप्त होते है, यह प्रदेश-वध है। 2 कर्म रूप से परिणत पुद्गल स्कधी का परमाणु की जानकारी करक निश्चय करना प्रदेश-वध है। प्रभाव-शाप ओर अनुग्रह की शक्ति को प्रभाव कहते है। यह शक्ति देवो में पायी जाती है।
प्रभावना-1 ज्ञान, ध्यान, तपश्चरण, दया, दान तथा जिनपूजा आदि के द्वारा जिन-धर्म की महिमा को प्रकाशित करना प्रभावना है। 2 रलय के प्रभाव से अपनी आत्मा को प्रकाशित करना प्रभावना है। यह सम्यग्दृष्टि का एक गुण है। प्रमत्त-सयत-जो साधु व्यक्त और अव्यक्त प्रमाद से युक्त रहकर भी महाव्रतो का पालन करते है वे प्रमत-सयत कहलाते हे। आहार-विहार, अध्ययन-मनन और धर्मोपदेश आदि शुभ क्रिया रूप प्रमाद से युक्त
जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 167