________________
वनस्पति जव निगोट या साधारण शरीर से आश्रित हो तो सप्रतिष्ठित-प्रत्यक कहलाती हे ओर जव निगोट से रहित हो तो अप्रतिष्ठित-प्रत्येक कहलाती है। प्रत्येक-बुद्धि ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से गुरु के उपदेश के विना ही कर्मो क उपशम से सम्यग्ज्ञान ओर तप के विषय मे प्रगति होती हे उसे प्रत्येक-बुद्धि-ऋद्धि कहते है। प्रत्येक-शरीर-जिस कर्म के निमित्त से एक शरीर का स्वामी एक जीव होता है उसे प्रत्येक-शरीर-नामकर्म कहते है। प्रथमानुयोग-1 एक महापुरुष सवधी यात्रेसठ शलाका पुरुष सवधी कथा रूप शास्त्र को प्रथमानुयोग कहते है। यह पुण्यवर्धक, वोधि व समाधिदायक परमार्थ का कथन करने वाला जिनवाणी का प्रमुख अङ्ग हे। कथा क माध्यम से धर्म के स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला यह अनुयोग प्राथमिक जीवो के लिए अत्यत उपकारी है। इसे सुनकर जीवो को सम्यग्दशन रूप वोधि ओर धर्म व शुक्ल ध्यान रूप समाधि को प्राप्ति होती है। इसमें वर्णित कथा वास्तविक होती है, कल्पित नहीं होती। जम्बूस्वामी-चरित्र, प्रद्युम्न-चरित्र, महापुराण, उत्तरपुराण, पद्मपुराण आदि ग्रथ प्रथमानुयोग रूप हे। 2 जो पुराणो का वर्णन करता हे वह प्रथमानुयोग है। यह दृष्टिवाद नामक वारहवे अङ्ग का तीसरा भेद है। प्रथमोपशम-सम्यक्त्व-मिथ्यादृष्टि जीव के मिथ्यात्व से छूटकर जो सर्वप्रथम उपशम-सम्यक्त्व होता है वह प्रथमोपशम-सम्यक्त्व कहलाता है। प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करने वालाजीव पचेन्द्रिय, 166 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश